जब भी ग़म से बात हुई
आंखो से बरसात हुई
उसने रस्ता बदल लिया
जब भी उसके साथ हुई
सब कुछ भूले बैठी हूँ
याद तेरी सौगात हुई
जुगनू चमके पलकों पर
जब भी दिल में रात हुई
पगली सोनी कुछ तो बता
पगले से क्या बात हुई
प्यार की बाजी जब भी खेली
सोनी अपनी मात हुई
Thursday, October 4, 2007
एक इक कर के ज़ख्म धोना है...
एक इक कर के ज़ख्म धोना है
आज जी भर के मुझको रोना है
तेरी यादों के कीमती मोती
सांस की डोर में पिरोना है
मेरी आंखों को मेरे अश्कों का
सोते सोते भी बोझ ढोना है
ऐसे वैसे को सौंप दूं कैसे
दिल तो नाज़ुक सा इक खिलौना है
सोनी रुदादे ग़म बहुत सुन ली
बस भी कर अब तो हम को सोना है
आज जी भर के मुझको रोना है
तेरी यादों के कीमती मोती
सांस की डोर में पिरोना है
मेरी आंखों को मेरे अश्कों का
सोते सोते भी बोझ ढोना है
ऐसे वैसे को सौंप दूं कैसे
दिल तो नाज़ुक सा इक खिलौना है
सोनी रुदादे ग़म बहुत सुन ली
बस भी कर अब तो हम को सोना है
Thursday, September 27, 2007
ये फ़साना है सोनी हकीक़त नहीं...
आपको हमसे मिलने की फु़रसत नहीं
ये अदावत है साहिब मुहब्बत नहीं
यूं बहाने बनाने से क्या फ़ायदा
साफ़ कह दीजिए हम से उल्फ़त नहीं
मेरे अश्कों से रोशन मेरी रात है
चांद तारों की मुझको ज़रूरत नहीं
दिल जलाते हैं हम रोशनी के लिए
इन चरागों की हमको ज़रूरत नहीं
प्यार के खेल में हार ही हार है
ये फ़साना है सोनी हकीक़त नहीं
ये अदावत है साहिब मुहब्बत नहीं
यूं बहाने बनाने से क्या फ़ायदा
साफ़ कह दीजिए हम से उल्फ़त नहीं
मेरे अश्कों से रोशन मेरी रात है
चांद तारों की मुझको ज़रूरत नहीं
दिल जलाते हैं हम रोशनी के लिए
इन चरागों की हमको ज़रूरत नहीं
प्यार के खेल में हार ही हार है
ये फ़साना है सोनी हकीक़त नहीं
चल दिए ...
हम सफ़र अपना रुख मोड़ कर चल दिये
मुझको दोराहे पर छोड़ कर चल दिये
मेरे चेहरे से थी क्या शिक़ायत कोई
आइना आप जो तोड़ कर चल दिये
खोखले बे समर पेड़ की सम्त ही
बदहवासी में हम दौड़ कर चल दिये
ज़िन्दगानी की जो कश्मकश में रहे
ज़िन्दगानी को वो छोड़ कर चल दिये
ज़लज़ले जब कभी भी ज़मीं से उठे
हम ग़रीबों के घर तोड़ कर चल दिये
मुझको दोराहे पर छोड़ कर चल दिये
मेरे चेहरे से थी क्या शिक़ायत कोई
आइना आप जो तोड़ कर चल दिये
खोखले बे समर पेड़ की सम्त ही
बदहवासी में हम दौड़ कर चल दिये
ज़िन्दगानी की जो कश्मकश में रहे
ज़िन्दगानी को वो छोड़ कर चल दिये
ज़लज़ले जब कभी भी ज़मीं से उठे
हम ग़रीबों के घर तोड़ कर चल दिये
Wednesday, September 26, 2007
वो मेरे अक्स को ...
वो मेरे अक्स को भी आईने से दूर रखता है
अगर मैं आइना देखूं तो वो मुझसे बिगड़ता है
कभी सुनता है जो गुन गुन मेरे नज़दीक भौंरे की
अजब है बाग़ में जा कर वो भौंरों से झगड़ता है
बुरी आदत है उसकी तन्ज़ करना बातों बातों में
अगर मैं रो पड़ी तो फिर वो मेरे साथ सुबकता है
मिसाल अब तक ये सुनते आये हैं हम अपने पुरखों से
अगर लड़ते हैं दो प्रेमी तो उनका प्यार बढ़ता है
नहीं समझेंगे सोनी लोग उसके दिल की फितरत को
मेरा दिल उसके ही दिल में तो रह रह कर धड़कता है
ए हवा यार तलक ..
ऎ हवा यार तलक जाने दे
फूल हूँ मुझको महक जाने दे
दिल की बेताबियाँ उस पर भी खुलें
दिल धड़कता है धड़क जाने दे
रोक पलकों पे न अपने आँसू
भर गए जाम छलक जाने दे
इश्क में दोनों जलेंगे मिलकर
आग कुछ और दहक जाने दे
ज़ख्म इंसानों के भर दे मौला
ये ज़मीं फूलों से ढक जाने दे
देख खिड़की में खड़ी हूँ कब से
चांद अब छत पे चमक जाने दे
तू फ़रिश्ता नहीं इन्सा बन जा
खु़द को थोड़ा सा बहक जाने दे
ऎ मेरे कृष्ण तेरी राधा को
एक ही पल को थिरक जाने दे
लोग खुद तोड़ने आ जायेंगे
प्यार का फल ज़रा पक जाने दे
फूल हूँ मुझको महक जाने दे
दिल की बेताबियाँ उस पर भी खुलें
दिल धड़कता है धड़क जाने दे
रोक पलकों पे न अपने आँसू
भर गए जाम छलक जाने दे
इश्क में दोनों जलेंगे मिलकर
आग कुछ और दहक जाने दे
ज़ख्म इंसानों के भर दे मौला
ये ज़मीं फूलों से ढक जाने दे
देख खिड़की में खड़ी हूँ कब से
चांद अब छत पे चमक जाने दे
तू फ़रिश्ता नहीं इन्सा बन जा
खु़द को थोड़ा सा बहक जाने दे
ऎ मेरे कृष्ण तेरी राधा को
एक ही पल को थिरक जाने दे
लोग खुद तोड़ने आ जायेंगे
प्यार का फल ज़रा पक जाने दे
मैं कैसे अपनी कहानी ...
मैं कैसे अपनी कहानी की इप्तिदा करती
तुम्हें न मांगती रब से तो और क्या करती
मेरी हया पे तुम्हीं कल को तब्सरा करते
जो लड़की होके भी मैं अर्जे मुद्दुआ करती
मैं सच कहूं मुझे तारीफ़ अच्छी लगती है
वो चांद कहते मुझे और मैं सुना करती
दिनों के बाद वो लौटा तो ख़ूब प्यार किया
अब ऐसे प्यार के मौसम में क्या गिला करती
बना के फूल वो ले जाता मुझको दफ़्तर में
तमाम दिन भी उसे खुशबुएं दिया करती
अब उसका काम है मुझको मना के ले जाना
क्षमा मैं मांगती उससे अगर ख़ता करती
ये फूल मेरे लिए ही तो रोज़ खिलते हैं
मैं इनसे प्यार न करती तो और क्या करती
तुम्हें न मांगती रब से तो और क्या करती
मेरी हया पे तुम्हीं कल को तब्सरा करते
जो लड़की होके भी मैं अर्जे मुद्दुआ करती
मैं सच कहूं मुझे तारीफ़ अच्छी लगती है
वो चांद कहते मुझे और मैं सुना करती
दिनों के बाद वो लौटा तो ख़ूब प्यार किया
अब ऐसे प्यार के मौसम में क्या गिला करती
बना के फूल वो ले जाता मुझको दफ़्तर में
तमाम दिन भी उसे खुशबुएं दिया करती
अब उसका काम है मुझको मना के ले जाना
क्षमा मैं मांगती उससे अगर ख़ता करती
ये फूल मेरे लिए ही तो रोज़ खिलते हैं
मैं इनसे प्यार न करती तो और क्या करती
Thursday, September 20, 2007
Wednesday, September 19, 2007
चांद पागल है
एक इक घुँघरू जिसका घायल है
पाँव में मेरे ऎसी पायल है
रोज़ तकता है मुझको खिड़की से
चांद का क्या है चांद पागल है
मेहरबानी है उस फ़रेबी की
भीगा भीगा जो मेरा काजल है
पेड़ पौधों के सब्ज़ चेहरे पर
काली काली घटा का आँचल है
दर्द चेहरे से हो न जाये अयां
आज दिल में अजब सी हलचल है
दर्दे फुरक़त से आज तो सोनी
आंख झरती हुई सी छागल है
पाँव में मेरे ऎसी पायल है
रोज़ तकता है मुझको खिड़की से
चांद का क्या है चांद पागल है
मेहरबानी है उस फ़रेबी की
भीगा भीगा जो मेरा काजल है
पेड़ पौधों के सब्ज़ चेहरे पर
काली काली घटा का आँचल है
दर्द चेहरे से हो न जाये अयां
आज दिल में अजब सी हलचल है
दर्दे फुरक़त से आज तो सोनी
आंख झरती हुई सी छागल है
Tuesday, September 18, 2007
रात रानी है
आप का दिल जो राजधानी है
मेरी उस पर भी हुक्मरानी है
तकती रहती है उसके चेहरे को
ये नज़र किस क़दर दिवानी है
ख़ास चेहरे पे जा के ठहरेगी
आंख मेरी बड़ी सयानी है
प्यार की राह पर जो चलते हैं
उनकी नज़रों में आग पानी है
रोज़ जलती हूँ शाम ढलने पर
शमआ जैसी मेरी कहानी है
भीगी भीगी सी शब की ज़ुल्फ़ मुझे
सुबह की धूप में सुखानी है
ए हवा उनसे जा के कह्दे तू
महकी महकी सी रात रानी है
मेरी उस पर भी हुक्मरानी है
तकती रहती है उसके चेहरे को
ये नज़र किस क़दर दिवानी है
ख़ास चेहरे पे जा के ठहरेगी
आंख मेरी बड़ी सयानी है
प्यार की राह पर जो चलते हैं
उनकी नज़रों में आग पानी है
रोज़ जलती हूँ शाम ढलने पर
शमआ जैसी मेरी कहानी है
भीगी भीगी सी शब की ज़ुल्फ़ मुझे
सुबह की धूप में सुखानी है
ए हवा उनसे जा के कह्दे तू
महकी महकी सी रात रानी है
Monday, September 17, 2007
किसकी नज़र ने
किसकी नज़र ने चांद के जैसा किया मुझे
हैरत से आज आइना देखा किया मुझे
वो शख़्स अपने आपमें पारस मिसाल था
पलभर में जिसके लम्स ने सोना किया मुझे
बारिश में सर से पाँव तलक जल रही हूँ मैं
सावन की इस फुआर ने शोला किया मुझे
वो शख़्स आज गुम है ग़मे रोज़गार में
फुरसत के रात दिन में जो सोचा किया मुझे
देकर दगा फ़रेब मोहब्बत के नाम पर
ए दोस्त तूने वाकफ़े दुनिया किया मुझे
हैरत से आज आइना देखा किया मुझे
वो शख़्स अपने आपमें पारस मिसाल था
पलभर में जिसके लम्स ने सोना किया मुझे
बारिश में सर से पाँव तलक जल रही हूँ मैं
सावन की इस फुआर ने शोला किया मुझे
वो शख़्स आज गुम है ग़मे रोज़गार में
फुरसत के रात दिन में जो सोचा किया मुझे
देकर दगा फ़रेब मोहब्बत के नाम पर
ए दोस्त तूने वाकफ़े दुनिया किया मुझे
मैं कब कश्ती डुबोना
मैं कब कश्ती डुबोना चाहती थी
नदी के पार होना चाहती थी
वहाँ कुछ ख़्वाब हैं आराम फ़रमा
मैं जिन आंखों में सोना चाहती थी
बिछड़ते वक्त सबसे छुप के मैं भी
लिपटकर उससे रोना चाहती थी
मैं उससे ख़्वाब में मिलने की खातिर
ज़रा सी देर सोना चाहती थी
मैं अपनी उल्फ़तों की फ़स्ल सोनी
तेरी आंखों में बोना चाहती थी
नदी के पार होना चाहती थी
वहाँ कुछ ख़्वाब हैं आराम फ़रमा
मैं जिन आंखों में सोना चाहती थी
बिछड़ते वक्त सबसे छुप के मैं भी
लिपटकर उससे रोना चाहती थी
मैं उससे ख़्वाब में मिलने की खातिर
ज़रा सी देर सोना चाहती थी
मैं अपनी उल्फ़तों की फ़स्ल सोनी
तेरी आंखों में बोना चाहती थी
Sunday, September 16, 2007
नज़र से गुजरने लगा
दिल की नाज़ुक रगों से गुज़रने लगा
दर्द तो रूह में अब उतरने लगा
चांद अपना सफ़र खत्म करने लगा
चांदनी रात का ज़ख्म भरने लगा
मेरा चेहरा गिला मुझसे करने लगा
आइना टूट कर जब बिखरने लगा
मेरी आवाज़ पर जो ठहरता न था
मेरी आवाज़ पर वो ठहरने लगा
मैं चरागों के जैसी दहलने लगी
वो हवाओं के जैसा गुज़रने लगा
चाप क़दमों की जब भी सुनाई पडी
उसका चेहरा नज़र से गुज़रने लगा
दर्द तो रूह में अब उतरने लगा
चांद अपना सफ़र खत्म करने लगा
चांदनी रात का ज़ख्म भरने लगा
मेरा चेहरा गिला मुझसे करने लगा
आइना टूट कर जब बिखरने लगा
मेरी आवाज़ पर जो ठहरता न था
मेरी आवाज़ पर वो ठहरने लगा
मैं चरागों के जैसी दहलने लगी
वो हवाओं के जैसा गुज़रने लगा
चाप क़दमों की जब भी सुनाई पडी
उसका चेहरा नज़र से गुज़रने लगा
जवान होने दो
ज़ख्मे दिल को जवान होने दो
दिल में कुछ तो निशान होने दो
मीठी मीठी सी नींद आएगी
और थोड़ी थकान होने दो
फ़स्ले गुल का लगान ठहराना
पहले उसको जवान होने दो
चोर जो दिल का है नज़र में है
पहले दिल को दुकान होने दो
फ़स्ल अश्कों की लहलहाएगी
दर्देदिल को किसान होने दो
दिल में कुछ तो निशान होने दो
मीठी मीठी सी नींद आएगी
और थोड़ी थकान होने दो
फ़स्ले गुल का लगान ठहराना
पहले उसको जवान होने दो
चोर जो दिल का है नज़र में है
पहले दिल को दुकान होने दो
फ़स्ल अश्कों की लहलहाएगी
दर्देदिल को किसान होने दो
Saturday, September 15, 2007
ज़ीनत तेरी बदन की
ज़ीनत तेरे बदन की हूं तेरा लिबास हूँ
अब मैं तेरे वजूद की पुख्ता असास हूँ
माना कि रात दिन मैं तेरे आसपास हूँ
लेकिन तेरे सुलूक से हर पल उदास हूँ
महरूम तेरी प्यास की लज़्ज़्त से जो रहा
मैं ही वो बदनसीब छलकता गिलास हूँ
रंगीनिये जहान से महरूम मैं रही
चरखे के पास जो न गया वो कपास हूँ
तर्के तआल्लुकात के बारे में क्या कहूं
गिरते हुए मकान की सोनी असास हूँ
अब मैं तेरे वजूद की पुख्ता असास हूँ
माना कि रात दिन मैं तेरे आसपास हूँ
लेकिन तेरे सुलूक से हर पल उदास हूँ
महरूम तेरी प्यास की लज़्ज़्त से जो रहा
मैं ही वो बदनसीब छलकता गिलास हूँ
रंगीनिये जहान से महरूम मैं रही
चरखे के पास जो न गया वो कपास हूँ
तर्के तआल्लुकात के बारे में क्या कहूं
गिरते हुए मकान की सोनी असास हूँ
मैं दिल में हूँ
अपने दिल में उतर मैं दिल में हूँ
मुझको मेहसूस कर मैं दिल में हूं
ढूँढता है किधर मैं दिल में हूं
अरे ओ कमनज़र मैं दिल में हूं
तेरे दिल पर न होने दूँगी कभी
ज़हरे ग़म का असर मैं दिल में हूं
ग़म के दरिया को पार करना है
थोड़ी हिम्मत तो कर मैं दिल में हूं
अपने दिल पर चला न यूँ खंजर
अरे ओ बेखबर मैं दिल में हूं
चांद पर एक दिन तो जाना है
चांद पर रख नज़र मैं दिल में हूं
मुझको मेहसूस कर मैं दिल में हूं
ढूँढता है किधर मैं दिल में हूं
अरे ओ कमनज़र मैं दिल में हूं
तेरे दिल पर न होने दूँगी कभी
ज़हरे ग़म का असर मैं दिल में हूं
ग़म के दरिया को पार करना है
थोड़ी हिम्मत तो कर मैं दिल में हूं
अपने दिल पर चला न यूँ खंजर
अरे ओ बेखबर मैं दिल में हूं
चांद पर एक दिन तो जाना है
चांद पर रख नज़र मैं दिल में हूं
रात है मैं हूँ
दर्दे पैहम है रात है मैं हूँ
आंख पुरनम है रात है मैं हूँ
शम्मा मद्धम है रात है मैं हूं
आंख में दम है रात है मै हूं
फ़िर वही अश्क से भरी आंखें
फ़िर वो ही ग़म है रात है मैं हूं
गर्द आलूद आईने की तरह
जु़ल्फ़ बरहम है रात है मैं हूँ
कहकशां चांद और तारों में
रौशनी कम है रात है मैं हूँ
लज़्ज़ते लम्स का बदन में मिरे
एक आलम है रात है मैं हूँ
वो ही रिसते हुए से ज़ख्मे जिगर
वो ही मरहम है रात है मैं हूँ
आज बुझते हुए चरागों का
घर में मातम है रात है मैं हूँ
गर्द उड़ती है हर तरफ सोनी
खु़श्क मौसम है रात है मैं हूं
आंख पुरनम है रात है मैं हूँ
शम्मा मद्धम है रात है मैं हूं
आंख में दम है रात है मै हूं
फ़िर वही अश्क से भरी आंखें
फ़िर वो ही ग़म है रात है मैं हूं
गर्द आलूद आईने की तरह
जु़ल्फ़ बरहम है रात है मैं हूँ
कहकशां चांद और तारों में
रौशनी कम है रात है मैं हूँ
लज़्ज़ते लम्स का बदन में मिरे
एक आलम है रात है मैं हूँ
वो ही रिसते हुए से ज़ख्मे जिगर
वो ही मरहम है रात है मैं हूँ
आज बुझते हुए चरागों का
घर में मातम है रात है मैं हूँ
गर्द उड़ती है हर तरफ सोनी
खु़श्क मौसम है रात है मैं हूं
Friday, September 14, 2007
पैगामे वस्ल
इक एक कर के बुझ गए उम्मीद के दिये
वो माँ हूँ जिसकी कोख में बच्चे नहीं जिये
पैगामे वस्ल जब भी तिरी आंख ने दिये
बिखरी है मेरी जुल्फ तेरी शाम के लिये
किरणें निकल रही थीं पसीने की बूँद से
पहलू में उसके बैठ के दो जाम क्या पिये
जब जब भी उसके आने की दिल को खबर मिली
आंखों में इंतज़ार के जलने लगे दिये
उम्मीद और बीम के दामन को थाम कर
अनजान एक शख्स के हम साथ चल दिये
सफ़ीना और समंदर
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