Saturday, September 15, 2007

ज़ीनत तेरी बदन की

ज़ीनत तेरे बदन की हूं तेरा लिबास हूँ
अब मैं तेरे वजूद की पुख्ता असास हूँ

माना कि रात दिन मैं तेरे आसपास हूँ
लेकिन तेरे सुलूक से हर पल उदास हूँ

महरूम तेरी प्यास की लज़्ज़्त से जो रहा
मैं ही वो बदनसीब छलकता गिलास हूँ

रंगीनिये जहान से महरूम मैं रही
चरखे के पास जो न गया वो कपास हूँ

तर्के तआल्लुकात के बारे में क्या कहूं
गिरते हुए मकान की सोनी असास हूँ

मैं दिल में हूँ

अपने दिल में उतर मैं दिल में हूँ
मुझको मेहसूस कर मैं दिल में हूं

ढूँढता है किधर मैं दिल में हूं
अरे ओ कमनज़र मैं दिल में हूं

तेरे दिल पर न होने दूँगी कभी
ज़हरे ग़म का असर मैं दिल में हूं

ग़म के दरिया को पार करना है
थोड़ी हिम्मत तो कर मैं दिल में हूं

अपने दिल पर चला न यूँ खंजर
अरे ओ बेखबर मैं दिल में हूं

चांद पर एक दिन तो जाना है
चांद पर रख नज़र मैं दिल में हूं

रात है मैं हूँ

दर्दे पैहम है रात है मैं हूँ
आंख पुरनम है रात है मैं हूँ

शम्मा मद्धम है रात है मैं हूं
आंख में दम है रात है मै हूं

फ़िर वही अश्क से भरी आंखें
फ़िर वो ही ग़म है रात है मैं हूं

गर्द आलूद आईने की तरह
जु़ल्फ़ बरहम है रात है मैं हूँ

कहकशां चांद और तारों में
रौशनी कम है रात है मैं हूँ

लज़्ज़ते लम्स का बदन में मिरे
एक आलम है रात है मैं हूँ

वो ही रिसते हुए से ज़ख्मे जिगर
वो ही मरहम है रात है मैं हूँ

आज बुझते हुए चरागों का
घर में मातम है रात है मैं हूँ

गर्द उड़ती है हर तरफ सोनी
खु़श्क मौसम है रात है मैं हूं