Wednesday, January 16, 2019

जिनकी नज़रों में अजनबी से हैं

जिनकी नज़रों में अजनबी से हैं
 देखने में वो आदमी से हैं

बात जो कर रहे हैं  रहबर की
मुतमइन क्या वो रहबरी से हैं

महके महके  ये सिलसिले गुल के
क़ाबिले दीद  ताज़गी  से हैं

जब से गर्दिश ने हमको घेरा है
शहर में अपने अजनबी से हैं

अहले दिल की नज़र में  हम अब भी
खूबसूरत हसीं परी से हैं

जो के ख़ुर्शीदे इश्क से फूटी
हम मुनव्वर वो रौशनी से हैं

हम तो  गुमनाम  दोस्ती से हैं
लोग मशहूर दुश्मनी से हैं 

उसके जलवे जहाँ बिखरते हैं

उसके जलवे जहाँ बिखरते हैं
चलो हम भी वहां ठहरते हैं

उनके लहजे में फूल झरते हैं
वो जो उर्दू में बात करते हैं

उसके दीवाने उसके कूंचे से
नाचते झूमते गुज़रते हैं

दुज निगाही से देखने वाले
अब इशारों में बात करते हैं

ख़्वाब बिखरे हैं इस तरह जैसे
आईने टूट  कर  बिखरते हैं

झील सी आँख में अनीता की
डूबने वाले कब उबरते हैं


माँ बुलाती है

जब कभी याद उस की आती है
नींद अश्कों में डूब जाती है

बे नियाज़ी कुम्हार की मुझको
चाक पे रख के भूल जाती है

दिल की दुनिया उजाड़ कर क़िस्मत
शोख़ बच्ची सी खिलखिलाती है

हिचकियाँ नीम शब में चलने से
हसरते वस्ल सर उठाती है

जब भी बचपन में लौटती  हूँ मैं
ऐसा लगता है माँ बुलाती है

क्या करूँ तर्के तअल्लुक़ का गिला
डाल जामुन की टूट जाती है

सोनी आवारह  वो नज़र तौबा
आते जाते मुझे सताती है

अहसान भुला देता है.

ज़ख़्म मरहम का जब अहसान भुला देता है.
दरे अहसास से फिर दर्द सदा देता है

चलने लगती है जो आवारह हवा की तरह
ऐसी कश्ती  को तो दरिया भी सजा देता है

अहले जर्मन की वो तारीख़ उठा कर देखो
जज़्बए बाहमी  दीवार गिरा देता है

ऐसे कमज़र्फ के एहसां से बचाना या रब
सरे बाज़ार  जो औक़ात बता देता है

दाब कर पांव जो माँ बाप के ख़ुश होते हैं
आसमां ऐसे ही बच्चों को सिला देता है

सोनी इस तर्केतअल्लुक़ से बचाना खुद को
ये मरज़ मौत की तस्वीर बना देता है