मेरी बाहों में उसकी बांह नहीं
आज हासिल मुझे पनाह नहीं
प्यार करना तो इक इबादत है
प्यार करना कोई गुनाह नहीं
एक दूजे के साथ हैं फ़िर भी
धूप और छांव में निबाह नहीं
मन के दर्पन में शक्ल है उसकी
मन का दर्पन अभी सियाह नहीं
भूलना होगा याद को उसकी
अब सिवा इसके कोई राह नहीं
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