Tuesday, July 31, 2018

दहेज़ गीत

साड़ी पहनूँ उसकी ख़ातिर या कुरता सलवार
घर आएगा देखने कोई मुझको पहली बार

घर बैठे बिकने आते हैं पढ़े लिखे ये बकरे
तीस मारखां जैसे तनकर  खूब दिखाएँ नख़रे
हम जब मोल चुकाएंगे बत्तीसी गिनकर देखेंगे
दम ख़म है के नहीं ज़रा सा ठोक बजा कर देखेंगें
घोड़ों के संग रेस लगाकर ट्रायल दो  एक बार ---साड़ी

बेटा बेच के माँ ने अपने दूध का कर्ज़ा पाया है
अपने ख़ून की कर के दलाली बाप ने माल कमाया है
बाज़ारू औरत कहते हैं तन जो बेचा करती है
इन दूल्हों को क्या कहते हैं  जिनकी बोली लगती है
अब तो पुरषों के भी लगते हैं मीना बाज़ार

घर गाड़ी पैसे और गहने बेशर्मी से मत मांगो
दान दहेज़ की आरी से बेटी के बाप को मत काटो
पढ़ लिखकर काबिल बनकर क्यूँ अपना मोल लगाते हो
लड़की वालों के आगे माँ बाप से भीख मंगाते हो
शर्म करो अब ख़त्म करो ये  भिखमंगों की क़तार



ग़ज़ल

आह और वाह  का तमाशा है
और सिवा इसके ज़िन्दगी क्या है

वो जो परदे के पीछे रहता है
वो ही क़ातिल है वो ही मसीहा है

पेशे ख़िदमत है जानो दिल साहिब
और किस चीज़ की तमन्ना है

ए  ख़ुदा खैर हो मेरे ख़त की
ग़ैर के हाथ में लिफ़ाफ़ा

मुझको बेनाम कर दिया आख़िर
और दुनिया का क्या इरादा है

सोनी उस नामुराद के दिल में
अब भी जीने की तमन्ना है 

Thursday, July 26, 2018

क़ुदरत के इन हसीन नज़ारों को चूम लूँ

ग़ज़ल

क़ुदरत के इन हसीन नज़ारों  को चूम लूँ
जी चाहता है चाँद सितारों को चूम लूँ

काग़ज़  की एक छोटी सी कश्ती में बैठ कर
बहती हुई नदी के किनारों को चूम लूँ

काली घटा की ओढ़नी सूरज पे डाल कर
सावन की सब्ज़ सब्ज़ बहारों को चूम लूँ

फूलों की अंजुमन में जो जाना नसीब हो
तितली की तरह मैं भी बहारों  को चूम लूँ

सोनी हवा के डोले पे होकर सवार मैं
बारिश की हल्की हल्की फुहारों को चूम लूँ