Saturday, June 1, 2019

ग़ज़ल

हम अगर ज़हरे फ़ुरक़त को पीते नहीं
ज़िन्दगी तुझको फुरसत में जीते नहीं
आज घर के चरागों से पूछेंगे हम
क्यूं अंधेरे की चादर को सीते नहीं
जैसे इल्हाम हो उनको इजलास का
दूध मांओं का बच्चे जो पीते नहीं
तब्सरा कर रहे हैं मोहब्बत पे वो
जो मुहब्बत से इक पल भी जीते नहीं
रूठने पर तिरे वक्त थम सा गया
रात बीती नहीं दिन भी बीते नहीं
होश वालों को करने दे बख़यागरी
सोनी दीवाने दामन को सीते नहीं