Thursday, September 20, 2007

एक दूजे के साथ हैं



मेरी बाहों में उसकी बांह नहीं
आज हासिल मुझे पनाह नहीं

प्यार करना तो इक इबादत है
प्यार करना कोई गुनाह नहीं

एक दूजे के साथ हैं फ़िर भी
धूप और छांव में निबाह नहीं

मन के दर्पन में शक्ल है उसकी
मन का दर्पन अभी सियाह नहीं

भूलना होगा याद को उसकी
अब सिवा इसके कोई राह नहीं