Sunday, February 17, 2008

गीत- चाहत का इक़रार किया

अपनी पहली चाहत का इक़रार किया
सुबह की उजली धूप ने मुझको प्यार किया

सर्द हवा ने तन को मेरे सहलाया
छुई मुई सी सिमट गयी मेरी काया
कितने सोये जज़्बों को बेदार किया . सुबह की...

बगिया में सब फ़ूल इशारे करते हैं
खुशबु के शहज़ादे मुझ पर मरते हैं
चाहत की इस खुशबु ने बीमार किया. सुबह की...

प्रेम दिवाने चांद से इक दिन बात हुई
प्रेम अगन उस दिन से मेरे साथ हुई
फ़िर मैंने भी आग का दरिया पार किया. सुबह की...

मुझे बनाया प्रेम दिवानी मौसम ने
मेरी विनती एक ना मानी मौसम ने
किये बहाने कितना ही इन्कार किया. सुबह की...

नदिया बोली हाथ पकड़ कर साथ चलो
मैं बहती हूं तुम भी मेरे साथ बहो
मैंने हंसकर निमंत्रण स्वीकार किया. सुबह की...

ध्यान में उसके डूबी इतना खोयी मैं
हर दिन उसकी याद में जागी सोयी मैं
आंखें खोली उसका ही दिदार किया. सुबह की...

जोरा जोरी करके अबके होली में
रंग भरे सौ प्यार के मेरी चोली में
कैसा कैसा बैरी ने व्यवहार किया. सुबह की ...

मेंहंदी रंग जो लायी मेरे हाथों में
तब आया विश्वास पिया की बातों में
कुमकुम ने सच्चाई का इज़हार किया. सुबह की...

ना तो प्यार के सच्चे अब अफ़साने हैं
ना मजनूं से रांझे से दिवाने हैं
प्यार के नाम पे सबने ही व्यापार किया. सुबह की...

ग़ज़ल- जिगर में रहती है

सोच जब भी सफ़र में रहती है
तेरी सूरत नज़र में रहती है

जब कभी उस को सोचती हूं मैं
एक खु़श्बू सी घर में रह्ती है

बात वो जिसमे तन्ज़ की बू हो
फ़ांस बनकर जिगर में रहती है

ये बुज़ुरगों का कौल है साहिब
कामियाबी हुनर में रहती है

रूह मेरी तो आज कल सोनी
दर्दे दिल के असर में रह्ती है

बता किधर जाउं

पास से उसके जो गुज़र जाउं
शर्म के मारे मैं तो मर जाउं

सोचती हूं के ऎसा कर जाउं
उसके नज़दीक से गुज़र जाउं

हो इज़ाज़त तो आप के दिल में
उम्रभर के लिये ठहर जाउं

इक तरफ़ इश्क इक तरफ़ दुनिया
जज़्बए दिल बता किधर जाउं

कर ले इकरार प्यार का मुझ से
इससे पहले के मैं मुकर जाउं

अपने दिल में समेट लेना मुझे
टूट कर जब कभी बिखर जाउं

तू पतंग और डोर मैं ठहरी
तू जिधर जाये मैं उधर जाउं

हाथ मिलते हैं

टूट कर जब कभी वो मिलते हैं
मेरी नस नस में फूल खिलते हैं

एक खा़मोश चीख़ उठती है
जब कभी ज़ख्म दिल के सिलते हैं

दिल मिलाओ तो कोई बात बात बने
साहिबों यूं तो हाथ मिलते हैं

संग राहों पे क्या चलेंगे वो
जिन के मखमल से पांव छिलते हैं

रोज़ आते हैं ज़लज़ले सोनी
रोज़ दरवाज़े घर के हिलते हैं

शिकारा है शाम है

पेड़ों का परबतों पे नज़ारा है शाम है
ऎसे में इन्तज़ार तुम्हारा है शाम है

अब आ के अपने चेहरे से पुरनूर कर इसे
ऎ दोस्त बे चराग़ शिकारा है शाम है

तेरे बगै़र झील का मन्ज़र भी है उदास
कितना धुवां धुवां सा नज़ारा है शाम है

काग़ज़ की नाव दिल मेरा बहलाये किस तरह
सूखी हुई नदी का किनारा है शाम है

दरवाज़ा खोल कर ज़रा तू देख ले उसे
सोनी कोई नसीब का मारा है शाम है

साया सिमट गया

जब हमसफ़र के साये में साया सिमट गया
मन्ज़िल क़रीब आ गयी रस्ता सिमट गया

तर्के तआल्लुकात का उसको भी है मलाल
मेरी ही तरह उसका भी चेहरा सिमट गया

होंठों पे प्यास लेके मैं तपती ज़मीन सी
दरया के पास आयी तो दरया सिमट गया

तारों के दरमियान से पूनम की रात में
चन्दा ने मुझ को देखा तो चन्दा सिमट गया

ये कौन आ के ठहरा है दरवाज़े के क़रीब
दरवाज़े का हमारे जो परदा सिमट गया

कल रात के फ़साद के बारे में क्या कहूं
दहशत से मां की गोद में बच्चा सिमट गया

सता रही है हवा

मेरी जानिब जो आ रही है हवा
उसका पैगा़म ला रही है हवा

देखकर रौशनी चरागो़ की
किस क़दर सर उठा रही है हवा

थपकियां दे के दिल के ज़ख्मों को
शाम ही से सुला रही है हवा

एक मुद्दत से हम चरागों को
ज़ौर अपना दिखा रही है हवा

क्या वो जाने बहार आता है
घर में खुशबु सी ला रही है हवा

तेज़ पाकर चराग़ की लौ को
अपना मुंह ले के जा रही है हवा

किस की खा़तिर ये शाम ढलने पर
बिस्तरे गुल बिछा रही है हवा

हम तो पहले ही से परेशां हैं
और तू क्यूं सता रही है हवा

आज आंधी के रूप में सोनी
अपना चेहरा दिखा रही है हवा

संवरने लगे हैं

नज़र जब से मुझ पर वो करने लगे हैं
बहारों के चेहरे उतरने लगे हैं

ये किसकी ख़बर है ये कौन आ रहा है
जो रातों को उठ कर संवरने लगे हैं

निगाहों के रस्ते वो अब धीरे धीरे
मेरे दिल के अन्दर उतरने लगे हैं

मेरे घर का परदा हवा से क्या सरका
क़दम आंधियों के ठहरने लगे हैं

ना ठोकर लगाओ हमें दोस्तों तुम
के अब टूट कर हम बिखरने लगे हैं

है तरके तआल्लुक में भी कुछ तआल्लुक
मुझे देखकर वो ठहरने लगे हैं

ज़मी के मसाइल को हम भूलकर अब
सफ़र आसमानों का करने लगे हैं

किसी रोज़ सोनी ना हो जाउं रुसवा
बड़ी देर तक वो ठहरने लगे हैं

मुझसे प्यार न कर

इस तरह दिल को बेक़रार न कर
सुबह आयेगी इन्तज़ार न कर

वापसी का मेरी यकीन नहीं
मैं मुसाफ़िर हूं मुझसे प्यार न कर

मेरे दामन से तेरी इज़्ज़त है
मेरे दामन को तार तार न कर

आदमी है वो मान जायेगा
इलतिज़ा उससे बार बार न कर

शौलए ईश्क सर्द होता है
आंख को अपनी अश्क बार न कर

जिसकी फ़ितरत में बेवफ़ाई हो
ऎसे इन्सा पे ऎतबार न कर

ये तआस्सुब के घी से जलते हैं
इन चराग़ों का ऎतबार न कर