Sunday, September 16, 2007

नज़र से गुजरने लगा

दिल की नाज़ुक रगों से गुज़रने लगा
दर्द तो रूह में अब उतरने लगा

चांद अपना सफ़र खत्म करने लगा
चांदनी रात का ज़ख्म भरने लगा

मेरा चेहरा गिला मुझसे करने लगा
आइना टूट कर जब बिखरने लगा

मेरी आवाज़ पर जो ठहरता न था
मेरी आवाज़ पर वो ठहरने लगा

मैं चरागों के जैसी दहलने लगी
वो हवाओं के जैसा गुज़रने लगा

चाप क़दमों की जब भी सुनाई पडी
उसका चेहरा नज़र से गुज़रने लगा

जवान होने दो

ज़ख्मे दिल को जवान होने दो
दिल में कुछ तो निशान होने दो

मीठी मीठी सी नींद आएगी
और थोड़ी थकान होने दो

फ़स्ले गुल का लगान ठहराना
पहले उसको जवान होने दो

चोर जो दिल का है नज़र में है
पहले दिल को दुकान होने दो

फ़स्ल अश्कों की लहलहाएगी
दर्देदिल को किसान होने दो