मैं कब कश्ती डुबोना चाहती थी
नदी के पार होना चाहती थी
वहाँ कुछ ख़्वाब हैं आराम फ़रमा
मैं जिन आंखों में सोना चाहती थी
बिछड़ते वक्त सबसे छुप के मैं भी
लिपटकर उससे रोना चाहती थी
मैं उससे ख़्वाब में मिलने की खातिर
ज़रा सी देर सोना चाहती थी
मैं अपनी उल्फ़तों की फ़स्ल सोनी
तेरी आंखों में बोना चाहती थी
Monday, September 17, 2007
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