Wednesday, September 19, 2007

चांद पागल है

एक इक घुँघरू जिसका घायल है
पाँव में मेरे ऎसी पायल है

रोज़ तकता है मुझको खिड़की से
चांद का क्या है चांद पागल है

मेहरबानी है उस फ़रेबी की
भीगा भीगा जो मेरा काजल है

पेड़ पौधों के सब्ज़ चेहरे पर
काली काली घटा का आँचल है

दर्द चेहरे से हो न जाये अयां
आज दिल में अजब सी हलचल है

दर्दे फुरक़त से आज तो सोनी
आंख झरती हुई सी छागल है