दर्दे पैहम है रात है मैं हूँ
आंख पुरनम है रात है मैं हूँ
शम्मा मद्धम है रात है मैं हूं
आंख में दम है रात है मै हूं
फ़िर वही अश्क से भरी आंखें
फ़िर वो ही ग़म है रात है मैं हूं
गर्द आलूद आईने की तरह
जु़ल्फ़ बरहम है रात है मैं हूँ
कहकशां चांद और तारों में
रौशनी कम है रात है मैं हूँ
लज़्ज़ते लम्स का बदन में मिरे
एक आलम है रात है मैं हूँ
वो ही रिसते हुए से ज़ख्मे जिगर
वो ही मरहम है रात है मैं हूँ
आज बुझते हुए चरागों का
घर में मातम है रात है मैं हूँ
गर्द उड़ती है हर तरफ सोनी
खु़श्क मौसम है रात है मैं हूं
Saturday, September 15, 2007
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