Wednesday, May 29, 2019

ग़ज़ल

ये हवा क्या करे वो घटा क्या करे
घाव नभ ने दिए हैं धरा क्या करे
भूख और प्यास जिस का मुक़द्दर हुए
आबोदाने का फिर वो गिला क्या करे
जब मुसाफ़िर ही कश्ती डुबोने लगे
ऐसी मुश्किल में वो नाख़ुदा क्या करे
पेड़ ने झूमने की अदा छोड़ दी
प्यार के गीत गाकर हवा क्या करे
सोनी रिश्तों में दीवार उठ जाए तो
घर के आंगन का बूढ़ा दिया क्या करे