Tuesday, August 21, 2018

ग़ज़ल

सोचती हूँ झुकाकर नज़र देख लूँ
कितने गहरे हैं ज़ख़्मे जिगर देख लूँ

लाख हिम्मत नहीं है मगर देख लूँ
उसके चेहरे को मैं एक नज़र देख लूँ

हो इजाज़त तो मैं आपकी आँख में
अपनी तस्वीर को एक नज़र देख लूँ

मेरी पलकों पे किरनें  चमकने लगें
बंद आँखों से उसको अगर देख लूँ

इससे पहले के सोनी वो मुझसे मिलें
एहतियातन इधर और उधर देख लूँ