Monday, September 17, 2007

किसकी नज़र ने

किसकी नज़र ने चांद के जैसा किया मुझे
हैरत से आज आइना देखा किया मुझे

वो शख़्स अपने आपमें पारस मिसाल था
पलभर में जिसके लम्स ने सोना किया मुझे

बारिश में सर से पाँव तलक जल रही हूँ मैं
सावन की इस फुआर ने शोला किया मुझे

वो शख़्स आज गुम है ग़मे रोज़गार में
फुरसत के रात दिन में जो सोचा किया मुझे

देकर दगा फ़रेब मोहब्बत के नाम पर
ए दोस्त तूने वाकफ़े दुनिया किया मुझे

मैं कब कश्ती डुबोना

मैं कब कश्ती डुबोना चाहती थी
नदी के पार होना चाहती थी

वहाँ कुछ ख़्वाब हैं आराम फ़रमा
मैं जिन आंखों में सोना चाहती थी

बिछड़ते वक्त सबसे छुप के मैं भी
लिपटकर उससे रोना चाहती थी

मैं उससे ख़्वाब में मिलने की खातिर
ज़रा सी देर सोना चाहती थी

मैं अपनी उल्फ़तों की फ़स्ल सोनी
तेरी आंखों में बोना चाहती थी