Wednesday, September 26, 2007

ए हवा यार तलक ..


ऎ हवा यार तलक जाने दे
फूल हूँ मुझको महक जाने दे

दिल की बेताबियाँ उस पर भी खुलें
दिल धड़कता है धड़क जाने दे

रोक पलकों पे न अपने आँसू
भर गए जाम छलक जाने दे

इश्क में दोनों जलेंगे मिलकर
आग कुछ और दहक जाने दे

ज़ख्म इंसानों के भर दे मौला
ये ज़मीं फूलों से ढक जाने दे

देख खिड़की में खड़ी हूँ कब से
चांद अब छत पे चमक जाने दे

तू फ़रिश्ता नहीं इन्सा बन जा
खु़द को थोड़ा सा बहक जाने दे
ऎ मेरे कृष्ण तेरी राधा को
एक ही पल को थिरक जाने दे

लोग खुद तोड़ने आ जायेंगे
प्यार का फल ज़रा पक जाने दे

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