Tuesday, September 11, 2018

जाते जाते छोड़ गए तुम आँखों में बरसात
पिया जी भीगूँ मैं दिन रात ...... पियाजी

अंसुवन से ये भीगा मौसम मन में आग लगाए
मन तुम्हारे दर्शन को तड़पे कौन इसे समझाए
इस ज़िद्दी बालक ने दे दी साजन मुझको मात ...... पियाजी भीगूँ  मैं .......

मेरे मुख पर झूलती लट  को वो तुम्हरा सुलझाना
बागीचे में देख अकेले बारम्बार सताना
रह रह कर अब याद आती हैं तुम्हारी हर इक बात ......पियाजी  भीगूँ  मैं......

साँझ ढले ही खुल जाते हैं यादों के सब द्वारे
ठंडी हवाएं भर देती हैं नस नस में अंगारे
होते हैं महसूस बदन पर तुम्हरे चंचल हाथ ..... पियाजी भीगूँ मैं.......

पायल की छन छन भी चुप है चूड़ी भी न खनके
कैसे नाचे कान  के बाले कैसे बिंदिया चमके
मांग रहे हैं ज़ेवर गहने फिर से तुम्हारा साथ ...... पियाजी भीगूँ  मैं.......

बस्ती भर में बन गयी मेरे मन की पीर कहानी
तुम मेरे मधुबन के कान्हा मैं तुम्हारी दीवानी
जपती हूँ मैं नाम तुम्हारा भूल गयी हर बात पियाजी। ..... भीगूँ  मैं.....