Thursday, October 11, 2018

गीत - मंदिर की मूर्ति पे नहीं उठती उँगलियाँ

मंदिर की मूर्ति  ने हाले  दिल बता दिया 
दुनिया ने किस तरह मुझे देवी बना दिया 

रूँधा था सबने पांव में, पत्थर थी राह में
इक दिन उठाया सबने, पूजने की चाह में 
एक ख़्वाब  मेरे वास्ते सबने सजा दिया....दुनिया ने किस तरह

पत्थर का दिल लिए वो आया मेरा मूर्तिकार  
छेनी हथोड़े ले लिए देने लगा संस्कार  
लाख चोट देके दर्द को सहना सिखा दिया..... दुनिया ने किस तरह 

धीरे धीरे रूप आने लगा, नूर छा गया  
अब चोट सहने का सलीक़ा मुझको आ गया  
दर्द पी के मुस्कुराना भी उसने सीखा दिया... दुनिया ने किस तरह

लाख चोट खा के दिल हुआ था दर्दे समंदर 
ऊपर से देखने में मगर थी बहुत  मैं सुन्दर 
मंदिर में एक दिन मुझे सबने बिठा दिया....दुनिया ने किस तरह 

मैं पूछती हूँ आपसे क्यूँ  पूजने से पहले 
संसार का नियम क्यूँ ज़रूरी है घाव सहने 
प्रतिमा का ये दुःख सबको दिखाई नहीं दिया ... दुनिया ने किस तरह

मंदिर की मूर्ति पे नहीं उठती उँगलियाँ
पत्थर से मूर्ति  बनी जानी सच्चाइयाँ ​
वरदान बन के पीड़ा ने सब कुछ भुला दिया... दुनिया ने किस तरह

है नारियों से कहना तुमको पड़े जो  सहना 
प्रतिमा की तरह तुम भी कभी लक्ष्य से न हटना 
 प्रतिमा ने नारियों को यूँ जीना सिखा दिया  ... दुनिया ने किस तरह