ज़ीनत तेरे बदन की हूं तेरा लिबास हूँ
अब मैं तेरे वजूद की पुख्ता असास हूँ
माना कि रात दिन मैं तेरे आसपास हूँ
लेकिन तेरे सुलूक से हर पल उदास हूँ
महरूम तेरी प्यास की लज़्ज़्त से जो रहा
मैं ही वो बदनसीब छलकता गिलास हूँ
रंगीनिये जहान से महरूम मैं रही
चरखे के पास जो न गया वो कपास हूँ
तर्के तआल्लुकात के बारे में क्या कहूं
गिरते हुए मकान की सोनी असास हूँ
अब मैं तेरे वजूद की पुख्ता असास हूँ
माना कि रात दिन मैं तेरे आसपास हूँ
लेकिन तेरे सुलूक से हर पल उदास हूँ
महरूम तेरी प्यास की लज़्ज़्त से जो रहा
मैं ही वो बदनसीब छलकता गिलास हूँ
रंगीनिये जहान से महरूम मैं रही
चरखे के पास जो न गया वो कपास हूँ
तर्के तआल्लुकात के बारे में क्या कहूं
गिरते हुए मकान की सोनी असास हूँ
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