बदला बदला हवा का तेवर है
अब सफ़ीना है और समंदर है
मेरी नज़रों में हम नज़र के बग़ैर
झील सहरा है फूल पत्थर है
इश्क की मौज जिसको कहते हैं
इक दहकता हुआ समंदर है
कोई मंज़र हँसी नहीं भाता
वो उदासी नज़र के अन्दर है
जो मिला मुझको बेवफा ही मिला
सोनी मेरा भी क्या मुकद्दर है
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