ये रिश्ते
ये रिश्ते लगते हैं मुझे रंग बिरंगे की़मती कपड़ों के छोटे छोटे टुकडे़,
खूब सुहाने खूब रेशमी खूब मखमली/ हर टुकडा़ दिल से लगाने को जी चाहे
एक को छोडूं दूसरा उठाउं,दूसरा छोडूं तीसरा,लेकिन हर टुकडा़
लगता है मुझे खूब काम का,
रोज़ थैली खोल कर उन्हें देखती हूं,खुश होती हूं,योजना बनाती हूं
लेकिन ये चिन्दे इतने छोटे हैं कि मैं इन्हें कभी किसी उपयोग में नही ले सकी.
सालों हो गये मुझे ये खूबसूरत की़मती लेकिन अनुपयोगी चिन्दों को सम्भालते सम्भालते,
अभी तक एक भी चिन्दा मेरे कुछ काम न आया.
जोड़ तोड़ कर चादर बनी फ़िर भी छोटी
नीचे खींचू तो सिर उघड़ता है,
सर छुपाउं तो अपनी ही जांघ उघड़ती है
Saturday, December 27, 2008
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