एक इक घुँघरू जिसका घायल है
पाँव में मेरे ऎसी पायल है
रोज़ तकता है मुझको खिड़की से
चांद का क्या है चांद पागल है
मेहरबानी है उस फ़रेबी की
भीगा भीगा जो मेरा काजल है
पेड़ पौधों के सब्ज़ चेहरे पर
काली काली घटा का आँचल है
दर्द चेहरे से हो न जाये अयां
आज दिल में अजब सी हलचल है
दर्दे फुरक़त से आज तो सोनी
आंख झरती हुई सी छागल है
Wednesday, September 19, 2007
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