Saturday, January 11, 2020

ग़ज़ल

कह रहे हैं अंधेरे के मारे सभी
आसमां नोच लें तेरे तारे सभी
हम सफीने की मानिंद डूबा किए
देखते ही रहे वो किनारे सभी
बाम पर वो नहीं है तो ए आसमां
खल रहे हैं नज़र को नज़ारे सभी
चलते चलते सरे राह वो क्या मिला
लोग दुश्मन हुए हैं हमारे सभी
फिर भी पहलू में तुमको न पाया कभी
हमने सदके तुम्हारे उतारे सभी
देखते किस की जानिब उठा कर नज़र
थे हमारी तरह ग़म के मारे सभी
सोनी बाहर न आया वो तस्वीर से
आज़माती रही मैं इशारे सभी