पेड़ों का परबतों पे नज़ारा है शाम है
ऎसे में इन्तज़ार तुम्हारा है शाम है
अब आ के अपने चेहरे से पुरनूर कर इसे
ऎ दोस्त बे चराग़ शिकारा है शाम है
तेरे बगै़र झील का मन्ज़र भी है उदास
कितना धुवां धुवां सा नज़ारा है शाम है
काग़ज़ की नाव दिल मेरा बहलाये किस तरह
सूखी हुई नदी का किनारा है शाम है
दरवाज़ा खोल कर ज़रा तू देख ले उसे
सोनी कोई नसीब का मारा है शाम है
Sunday, February 17, 2008
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