इस तरह दिल को बेक़रार न कर
सुबह आयेगी इन्तज़ार न कर
वापसी का मेरी यकीन नहीं
मैं मुसाफ़िर हूं मुझसे प्यार न कर
मेरे दामन से तेरी इज़्ज़त है
मेरे दामन को तार तार न कर
आदमी है वो मान जायेगा
इलतिज़ा उससे बार बार न कर
शौलए ईश्क सर्द होता है
आंख को अपनी अश्क बार न कर
जिसकी फ़ितरत में बेवफ़ाई हो
ऎसे इन्सा पे ऎतबार न कर
ये तआस्सुब के घी से जलते हैं
इन चराग़ों का ऎतबार न कर
Sunday, February 17, 2008
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