Sunday, February 17, 2008

हाथ मिलते हैं

टूट कर जब कभी वो मिलते हैं
मेरी नस नस में फूल खिलते हैं

एक खा़मोश चीख़ उठती है
जब कभी ज़ख्म दिल के सिलते हैं

दिल मिलाओ तो कोई बात बात बने
साहिबों यूं तो हाथ मिलते हैं

संग राहों पे क्या चलेंगे वो
जिन के मखमल से पांव छिलते हैं

रोज़ आते हैं ज़लज़ले सोनी
रोज़ दरवाज़े घर के हिलते हैं

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