Sunday, October 14, 2018

ग़ज़ल - धूप का आकाश जैसे माँ का आँचल हो गया

देखकर मुझको ह्रदय मौसम का चंचल हो गया 
होश खो बैठे हैं तारे चाँद पागल हो गया 

जाने कैसे प्यार उसका बन गया बिंदिया मेरी 
जाने कैसे वो मेरी आँख का काजल हो गया 

उससे था जन्मों का रिश्ता साथ कैसे छूटता 
मैं जो नदिया बन गयी वो प्यासा बादल हो गया 

फिर दुखों की राह में माँ की दुआ काम आ गयी 
धूप का आकाश जैसे माँ का आँचल हो गया 

आपके स्पर्श ने मुझको मुकम्मल कर दिया 
आपके छूने से सारा जिस्म संदल हो गया 

वो थे जब सोनी तो दिल का ये नगर आबाद था 
वो गए तो घर मेरा वीरान जंगल हो गया 

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