मैं कैसे अपनी कहानी की इप्तिदा करती
तुम्हें ना माँगती रब से तो और क्या करती
मेरी हया पे तुम्ही कल को तब्सरा करते
जो लड़की हो के भी मैं अर्ज़े मुद्दुआ करती
मैं सच कहूं मुझे तारीफ़ अच्छी लगती है
वो चाँद कहते मुझे और मैं सुना करती
दिनों के बाद वो लौटा तो खूब प्यार किया
अब ऐसे प्यार के मौसम में क्या गिला करती
बना के फूल वो ले जाता मुझको दफ़्तर में
तमाम दिन भी उसे ख़ुशबुएं दिया करती
अब उसका काम है मुझको मना के ले जाना
क्षमा मैं मांगती उससे अगर ख़ता करती
ये फूल मेरे लिए ही तो रोज़ खिलते हैं
मैं इनसे प्यार ना करती तो और क्या करती
न बाप ज़िंदा न घर में जहेज़ का सामान
वो अपनी बच्ची को किस तरह से विदा करती
वो भाई बहनों की रोटी की आस है सोनी
वो क़त्ल करके उन्हें किस तरह विदा करती
तुम्हें ना माँगती रब से तो और क्या करती
मेरी हया पे तुम्ही कल को तब्सरा करते
जो लड़की हो के भी मैं अर्ज़े मुद्दुआ करती
मैं सच कहूं मुझे तारीफ़ अच्छी लगती है
वो चाँद कहते मुझे और मैं सुना करती
दिनों के बाद वो लौटा तो खूब प्यार किया
अब ऐसे प्यार के मौसम में क्या गिला करती
बना के फूल वो ले जाता मुझको दफ़्तर में
तमाम दिन भी उसे ख़ुशबुएं दिया करती
अब उसका काम है मुझको मना के ले जाना
क्षमा मैं मांगती उससे अगर ख़ता करती
ये फूल मेरे लिए ही तो रोज़ खिलते हैं
मैं इनसे प्यार ना करती तो और क्या करती
न बाप ज़िंदा न घर में जहेज़ का सामान
वो अपनी बच्ची को किस तरह से विदा करती
वो भाई बहनों की रोटी की आस है सोनी
वो क़त्ल करके उन्हें किस तरह विदा करती
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