जिस्म के ये व्योपारी कब सहारा देते हैं
पहले माँग भरते हैं फिर गुज़ारा देते हैं
ये हमारे आँसू भी कम नहीं चरागों से
जब चराग़ बुझते हैं ये सहारा देते हैं
पुरसुकून शहरों में आग ख़ुद नहीं लगती
सरफिरी हवाओँ को वो इशारा देते हैं
उनकी राजनीती का कुछ पता नहीं चलता
कब शरारा देते हैं कब सितारा देते हैं
इन सियासी लोगों की फ़ितरतों में शामिल है
पहले घर जलाते हैं फिर सहारा देते हैं
हमने छोड़ रक्खा है फैसला बुज़ुर्गों पर
देखिये हमें किस दिन हक़ हमारा देते हैं
पहले माँग भरते हैं फिर गुज़ारा देते हैं
ये हमारे आँसू भी कम नहीं चरागों से
जब चराग़ बुझते हैं ये सहारा देते हैं
पुरसुकून शहरों में आग ख़ुद नहीं लगती
सरफिरी हवाओँ को वो इशारा देते हैं
उनकी राजनीती का कुछ पता नहीं चलता
कब शरारा देते हैं कब सितारा देते हैं
इन सियासी लोगों की फ़ितरतों में शामिल है
पहले घर जलाते हैं फिर सहारा देते हैं
हमने छोड़ रक्खा है फैसला बुज़ुर्गों पर
देखिये हमें किस दिन हक़ हमारा देते हैं
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