Monday, October 15, 2018

ग़ज़ल - लिक्खी हैं मेरे दिल पे तेरी बातें बहुत सीं

याद आयीं किसी से जो मुलाक़ातें  बहुत सीं  
गुज़री मेरी आँखों से भी बरसातें बहुत सीं 

बैठूं जो सुनाने तो फिर इक उम्र गुज़र जाये 
लिक्खी हैं मेरे दिल पे तेरी बातें बहुत सीं  

ए चाँद ठहर रात के तू साथ ना जाना 
करनी है तेरे साथ अभी बातें बहुत सीं 

 कुछ दिन की जुदाई है सदा को नहीं बिछड़े 
बाक़ी हैं अभी अपनी मुलाक़ातें  बहुत सीं 

बाबा मेरा मुफ़लिस था  मैं बैठी रही घर में 
आयीं तो मेरे घर पे भी बारातें  बहुत सीं 

उन जागती रातों को भुलाऊँगी मैं कैसे 
गुज़री हैं तेरे बिन जो मेरी  रातें बहुत सीं 

लौट आएंगे परदेस से घर अबके वो सोनी
गुज़रेंगी अभी साथ में  बरसातें बहुत सीं  
  

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