Monday, October 15, 2018

ग़ज़ल - मैं ए मालिक किनारा चाहती हूँ

क़रीब आ प्यार का इज़हार कर दे 
मुझे छू ले  मुझे  गुलज़ार  कर दे 

मैं ए मालिक किनारा चाहती हूँ 
मेरे कच्चे घड़े  को पार कर दे 

चमकती है मेरे बालों में चांदी 
बहुत मुमकिन है वो इंकार कर दे 

अभी तक ख़्वाब  हूँ तेरी नज़र का 
मेरे मंज़र मुझे साकार कर दे 

वो जिसमे प्यार की खबरें  छपी हों 
मेरे चेहरे को वो अख़बार कर दे 

दुआ है लीडरों के हक़ में भगवन 
इन्हें  थोड़ा सा बा किरदार कर दे 

हमें  ख़ुश्बू बना दे ए  रचेता 
ये दुनिया बे दरो दीवार कर दे 

उदासी बन गयी मेरा  मुक़द्दर 
कोई आकर मेरा शृंगार कर दे 

मुहब्बत की वसीयत लिखने वाले 
मुझे भी इसमें कुछ हक़दार कर दे 

परींदे प्यार के कुछ उड़ रहे हैं 
ख़ुदा जाने वो कब लाचार कर दे 

सदा लड़ना अनीता उस हवा से 
जो सारे शहर को बीमार कर दे 

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