तुमको ख़ुदा बनाया मेरी जान मानलो
कुछ तो मेरी निगाह का अहसान मान लो
दुनिया की ये हवस न सताए तुम्हे कभी
गर ख़ुद को चंद रोज़ का मेहमान मान लो
क़िरदार पर वो दाग़ हैं जीना मुहाल है
फिर भी ये ज़िद है साहिबे ईमान मान लाओ
अपनी उदासियोंकी नुमाइश मैं क्या करूँ
चेहरे को मेरे मीर का दीवान मान लो
इस मुल्क़ की भलाई फ़क़त एकता में है
फ़िरक़ापरस्तों वक्त का फ़रमान मान लो
झगड़े ये धर्म ज़ात के हो जाएँ तय अभी
तुम सबको अपने जैसा जो इंसान मान लो
सोनी चमन में फूल मयस्सर नहीं अगर
ज़ख़्मों को ही बहार का वरदान मान लो
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