जिनकी नज़रों में अजनबी से हैं
देखने में वो आदमी से हैं
बात जो कर रहे हैं रहबर की
मुतमइन क्या वो रहबरी से हैं
महके महके ये सिलसिले गुल के
क़ाबिले दीद ताज़गी से हैं
जब से गर्दिश ने हमको घेरा है
शहर में अपने अजनबी से हैं
अहले दिल की नज़र में हम अब भी
खूबसूरत हसीं परी से हैं
जो के ख़ुर्शीदे इश्क से फूटी
हम मुनव्वर वो रौशनी से हैं
हम तो गुमनाम दोस्ती से हैं
लोग मशहूर दुश्मनी से हैं
देखने में वो आदमी से हैं
बात जो कर रहे हैं रहबर की
मुतमइन क्या वो रहबरी से हैं
महके महके ये सिलसिले गुल के
क़ाबिले दीद ताज़गी से हैं
जब से गर्दिश ने हमको घेरा है
शहर में अपने अजनबी से हैं
अहले दिल की नज़र में हम अब भी
खूबसूरत हसीं परी से हैं
जो के ख़ुर्शीदे इश्क से फूटी
हम मुनव्वर वो रौशनी से हैं
हम तो गुमनाम दोस्ती से हैं
लोग मशहूर दुश्मनी से हैं
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