ज़ख़्म मरहम का जब अहसान भुला देता है.
दरे अहसास से फिर दर्द सदा देता है
चलने लगती है जो आवारह हवा की तरह
ऐसी कश्ती को तो दरिया भी सजा देता है
अहले जर्मन की वो तारीख़ उठा कर देखो
जज़्बए बाहमी दीवार गिरा देता है
ऐसे कमज़र्फ के एहसां से बचाना या रब
सरे बाज़ार जो औक़ात बता देता है
दाब कर पांव जो माँ बाप के ख़ुश होते हैं
आसमां ऐसे ही बच्चों को सिला देता है
सोनी इस तर्केतअल्लुक़ से बचाना खुद को
ये मरज़ मौत की तस्वीर बना देता है
दरे अहसास से फिर दर्द सदा देता है
चलने लगती है जो आवारह हवा की तरह
ऐसी कश्ती को तो दरिया भी सजा देता है
अहले जर्मन की वो तारीख़ उठा कर देखो
जज़्बए बाहमी दीवार गिरा देता है
ऐसे कमज़र्फ के एहसां से बचाना या रब
सरे बाज़ार जो औक़ात बता देता है
दाब कर पांव जो माँ बाप के ख़ुश होते हैं
आसमां ऐसे ही बच्चों को सिला देता है
सोनी इस तर्केतअल्लुक़ से बचाना खुद को
ये मरज़ मौत की तस्वीर बना देता है
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