उसके जलवे जहाँ बिखरते हैं
चलो हम भी वहां ठहरते हैं
उनके लहजे में फूल झरते हैं
वो जो उर्दू में बात करते हैं
उसके दीवाने उसके कूंचे से
नाचते झूमते गुज़रते हैं
दुज निगाही से देखने वाले
अब इशारों में बात करते हैं
ख़्वाब बिखरे हैं इस तरह जैसे
आईने टूट कर बिखरते हैं
झील सी आँख में अनीता की
डूबने वाले कब उबरते हैं
चलो हम भी वहां ठहरते हैं
उनके लहजे में फूल झरते हैं
वो जो उर्दू में बात करते हैं
उसके दीवाने उसके कूंचे से
नाचते झूमते गुज़रते हैं
दुज निगाही से देखने वाले
अब इशारों में बात करते हैं
ख़्वाब बिखरे हैं इस तरह जैसे
आईने टूट कर बिखरते हैं
झील सी आँख में अनीता की
डूबने वाले कब उबरते हैं
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