Wednesday, January 16, 2019

उसके जलवे जहाँ बिखरते हैं

उसके जलवे जहाँ बिखरते हैं
चलो हम भी वहां ठहरते हैं

उनके लहजे में फूल झरते हैं
वो जो उर्दू में बात करते हैं

उसके दीवाने उसके कूंचे से
नाचते झूमते गुज़रते हैं

दुज निगाही से देखने वाले
अब इशारों में बात करते हैं

ख़्वाब बिखरे हैं इस तरह जैसे
आईने टूट  कर  बिखरते हैं

झील सी आँख में अनीता की
डूबने वाले कब उबरते हैं


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