मेरी राहों से कांटे हटाते रहे
लोग एहसान लेकिन जताते रहे
बन्द होंटों से मैं मुस्कुराती रही
वो मुहब्बत से मुझको मनाते रहे
आज के रंग भरकर निगाहों में हम
कल की तस्वीर दिलकश बनाते रहे
लोग भरकर निगाहों में चहरा मिरा
हाथ ज्योतिष को अपना दिखाते रहे
अपने मतलब की ख़ातिर हमेशा ही वो
झूठी कसमें मेरे सर की खाते रहे
लोग पाताल से पानी लेे आए हैं
हम पतंगों के पेंच लड़ाते रहे
लोग एहसान लेकिन जताते रहे
बन्द होंटों से मैं मुस्कुराती रही
वो मुहब्बत से मुझको मनाते रहे
आज के रंग भरकर निगाहों में हम
कल की तस्वीर दिलकश बनाते रहे
लोग भरकर निगाहों में चहरा मिरा
हाथ ज्योतिष को अपना दिखाते रहे
अपने मतलब की ख़ातिर हमेशा ही वो
झूठी कसमें मेरे सर की खाते रहे
लोग पाताल से पानी लेे आए हैं
हम पतंगों के पेंच लड़ाते रहे
No comments:
Post a Comment