Wednesday, September 12, 2018

ग़ज़ल

ए  मेरे मालिक कलम से इल्तिजा लिखती हूँ मैं
ए नए फूलों तुम्हे दिल से दुआ लिखती हूँ मैं
देखती हूँ जब ज़मीं पर कोई आफ़त  आएगी
दुश्मनों के दर पे भी अपना पता लिखती हूँ मैं
बस गयी है जब से मेरे दिल में सूरत आपकी
उस घडी से अपने दिल को आइना लिखती हूँ मैं
मोतियों से तोलती हूँ अपने हर इक  शेर को
आँसुओं से ज़िन्दगी का माज़रा लिखती हूँ मैं
 ख़ून आँखों से छलक पड़ता है अपने आप ही
जब किसी काग़ज़ पर अपना तजुर्बा लिखती हूँ मै
थोड़ा रोने से उतर जाता है मन का बोझ भी
इसलिए तो अपनी आँखों को घटा लिखती हूँ मैं
कैसे अपने आप आ जाती है लफ़्ज़ों में मिठास
सोनी ज़हरे इश्क़ का जब ज़ायक़ा लिखती हूँ मैं


मेरी ग़ज़ल मेरा आइना।  मैं भी दुआ करूँ आप भी दुआ करें। 

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