जितनी नज़दीक उसके गयी ज़िन्दगी
उतनी ही दूर उससे हुई ज़िन्दगी
कोई बादल न गुज़रा बरसता हुआ
एक सूखी नदी ही रही ज़िन्दगी
मैं तो आवाज़ देकर जगाती रही
मौत सी नींद सोती रही ज़िन्दगी
साक़िए मयक़दा मयकशी के लिए
कम मिली कम मिली कम मिली ज़िन्दगी
पास आकर कभी और कभी दूर से
मुझको आवाज़ देती रही ज़िन्दगी
चाँद तारों से सोनी शबे हिज़्र में
मांगती ही रही रौशनी ज़िन्दगी
"चाँद पागल गया " मेरे पहले ग़ज़ल संग्रह से है मेरी ज़िन्दगी का ये एक छोटा सा आइना। अगर आप देखेंगे तो शायद ये आपको अपना आइना लगे. बहुत बहुत शुक्रिया.
उतनी ही दूर उससे हुई ज़िन्दगी
कोई बादल न गुज़रा बरसता हुआ
एक सूखी नदी ही रही ज़िन्दगी
मैं तो आवाज़ देकर जगाती रही
मौत सी नींद सोती रही ज़िन्दगी
साक़िए मयक़दा मयकशी के लिए
कम मिली कम मिली कम मिली ज़िन्दगी
पास आकर कभी और कभी दूर से
मुझको आवाज़ देती रही ज़िन्दगी
चाँद तारों से सोनी शबे हिज़्र में
मांगती ही रही रौशनी ज़िन्दगी
"चाँद पागल गया " मेरे पहले ग़ज़ल संग्रह से है मेरी ज़िन्दगी का ये एक छोटा सा आइना। अगर आप देखेंगे तो शायद ये आपको अपना आइना लगे. बहुत बहुत शुक्रिया.
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