Wednesday, September 12, 2018

ये और बात के आँसू  बहा बहा के जिए
चिराग़ याद के तेरी मगर जला के जिए

हम अपने बाद की नस्लों को याद आएँगे
हम अपने कांधों पे अपनी सलीब उठा के जिए

उदासियों ने तो अब आके हमको घेरा है
बहुत दिनों तो यहाँ हम भी मुस्कुरा के जिए

तमाम शहर में हैं नफ़रतों के अँधियारे
मगर ख़ुलूस की हम मशअलें जला के जिए

दिखाई देने लगे अक्स संगबारों के
हम अपने आप को यूँ आइना बना के जिए

अजीब लोग थे सोनी जो क़द की हसरत में
तमाम उम्र ही बैसाखियाँ लगा के जिए



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