ये और बात के आँसू बहा बहा के जिए
चिराग़ याद के तेरी मगर जला के जिए
हम अपने बाद की नस्लों को याद आएँगे
हम अपने कांधों पे अपनी सलीब उठा के जिए
उदासियों ने तो अब आके हमको घेरा है
बहुत दिनों तो यहाँ हम भी मुस्कुरा के जिए
तमाम शहर में हैं नफ़रतों के अँधियारे
मगर ख़ुलूस की हम मशअलें जला के जिए
दिखाई देने लगे अक्स संगबारों के
हम अपने आप को यूँ आइना बना के जिए
अजीब लोग थे सोनी जो क़द की हसरत में
तमाम उम्र ही बैसाखियाँ लगा के जिए
चिराग़ याद के तेरी मगर जला के जिए
हम अपने बाद की नस्लों को याद आएँगे
हम अपने कांधों पे अपनी सलीब उठा के जिए
उदासियों ने तो अब आके हमको घेरा है
बहुत दिनों तो यहाँ हम भी मुस्कुरा के जिए
तमाम शहर में हैं नफ़रतों के अँधियारे
मगर ख़ुलूस की हम मशअलें जला के जिए
दिखाई देने लगे अक्स संगबारों के
हम अपने आप को यूँ आइना बना के जिए
अजीब लोग थे सोनी जो क़द की हसरत में
तमाम उम्र ही बैसाखियाँ लगा के जिए
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