
इक एक कर के बुझ गए उम्मीद के दिये
वो माँ हूँ जिसकी कोख में बच्चे नहीं जिये
पैगामे वस्ल जब भी तिरी आंख ने दिये
बिखरी है मेरी जुल्फ तेरी शाम के लिये
किरणें निकल रही थीं पसीने की बूँद से
पहलू में उसके बैठ के दो जाम क्या पिये
जब जब भी उसके आने की दिल को खबर मिली
आंखों में इंतज़ार के जलने लगे दिये
उम्मीद और बीम के दामन को थाम कर
अनजान एक शख्स के हम साथ चल दिये
 
 
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1 comment:
yes. luv this post!
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