अंदाज़ ज़िन्दगी का बदलने से क्या मिला
ए दोस्त तेरे पहलू में ढलने से क्या मिला
मिट्टी के वो शरीर तो मिट्टी को पा गए
चन्दन को उन चिताओं में जलने से क्या मिला
सायों में भी वो धूप का माहौल ही रहा
छाओं में हमको पेड़ की चलने से क्या मिला
पत्थर मिसाल शख़्स था पत्थर का ही रहा
कल रात हमको उसके पिघलने से क्या मिला
आवारगी से पांव के छालों ने पूछा है
घर छोड़ कर सड़क पे निकलने से क्या मिला
ए इंतज़ारे वस्ल मिरी सुब्ह को बता
कमरे में रातभर यूं टहलने से क्या मिला
ए दोस्त तेरे पहलू में ढलने से क्या मिला
मिट्टी के वो शरीर तो मिट्टी को पा गए
चन्दन को उन चिताओं में जलने से क्या मिला
सायों में भी वो धूप का माहौल ही रहा
छाओं में हमको पेड़ की चलने से क्या मिला
पत्थर मिसाल शख़्स था पत्थर का ही रहा
कल रात हमको उसके पिघलने से क्या मिला
आवारगी से पांव के छालों ने पूछा है
घर छोड़ कर सड़क पे निकलने से क्या मिला
ए इंतज़ारे वस्ल मिरी सुब्ह को बता
कमरे में रातभर यूं टहलने से क्या मिला
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