भरे घर का भी आँगन काटता है
न हो साजन तो दर्पण काटता है
फुआरें आग बरसाती हैं तन पर
अकेलेपन में सावन काटता है
तुम्हारी याद में जलती है बिंदिया
कलाई को ये कंगन काटता है
वो बच्चा जल्द हो जाता है बूढा
ग़रीबी में जो बचपन काटता है
कन्हाई की अगर बंसी न बाजे
तो फिर कान्हा को मधुबन काटता है
बसी है इस जगह पुरखों की यादें
पुराने घर का आँगन काटता है
सुकूने दिल अगर खो जाये सोनी
तो धन वालों को भी धन काटता है
न हो साजन तो दर्पण काटता है
फुआरें आग बरसाती हैं तन पर
अकेलेपन में सावन काटता है
तुम्हारी याद में जलती है बिंदिया
कलाई को ये कंगन काटता है
वो बच्चा जल्द हो जाता है बूढा
ग़रीबी में जो बचपन काटता है
कन्हाई की अगर बंसी न बाजे
तो फिर कान्हा को मधुबन काटता है
बसी है इस जगह पुरखों की यादें
पुराने घर का आँगन काटता है
सुकूने दिल अगर खो जाये सोनी
तो धन वालों को भी धन काटता है
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