Wednesday, August 8, 2018

ये है खाना खज़ाना कार्यक्रम कविता का,
आज बनेगा हमारी मन की रसोई में एक मसालेदार गीत
सामग्री के लिए काव्यकला  के डब्बे डिबिया निकालिये और लीजिये
 एक  चाँद एक चांदनी, कुछ राग कुछ रागिनी
थोड़ी सी जवानी वो भी दीवानी
एक उम्र ज़रा सी कच्ची पर प्रीत बिलकुल सच्ची
तेज़ धड़कन धीमी सी आस एक पारो एक देवदास
 बरसते दो नयन एक गगन, एक समाज अपने में मगन
एक कली और कुछ फूल, एक भंवरा और बाकी  शूल
थोड़ी सी नींद बहुत सारे सपने, दुनिया भर के दुश्मन दो चार अपने
छोटा सा दिन लम्बी सी रात, पुकारती कोयल और पपीहे की बात
थोड़ी सी बेवफ़ाई और ताज़ा बहाना
पल भर की रूठन और घड़ी भर का मनाना
 अम्बुआ की डाल  सावन के झूले ज़ुल्फ़ों की छाँव में रास्ता जो भूले
छनकती चूड़ियां झनकती पायल,  एक  बीमार एक घायल
थोड़ी सी हंसी बेहिसाब रोना, पाना काम ज़्यादा खोना
झूठ मूठ की झड़प और और सचमुच की तड़प
ढेर सारे आंसू ठंडी सी आह, कोमल क़दम काँटों की राह
कुछ भूली बिसरी बातें कुछ खट्टी  मीठी याद
  इक लैला मजनूं और  इक शीरी फ़रहाद
प्यार की दुश्मन ये  ही दुनिया और अपनों के सवाल
मुझ जैसी इक "सोनी" हो और इक तुझसा महवाल
इक उफ़नाती नदिया और एक हो कच्चा घड़ा
प्यार की खातिर  मर जाने का जज़्बा सबसे बड़ा
पल भर का  मिलन और जीवन  भर  की जुदाई
         एक हो  ईश्वर या हो एक ख़ुदाई
बस इतनी ही चीज़ें पड़ती हैं गीत में
इन्हें कल्पना के किचन में सजाइये
काग़ज़  की कड़ाही में  ग़मों का घी डालकर अरमानों की आग में तपाइये
जब धुँआ दिल से  उठने लगे तो एक एक कर सारे मसाले छौंक दीजिये.
कलम की कलछी से ख़ूब मिलाइये,  बना के कहीं भूल न जाइये ,
 अच्छे शीर्षक से सजा के, दो दो  चार चार की लाइनों में परोसिये
लीजिये गरमा गरम लाजवाब गीत तैयार है।
यहीं  खाएंगे या घर ले जायेंगे




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