Monday, July 14, 2008

देखते हैं

गुफ़्तगू को बदल के देखते हैं
उसके लहज़े मैं ढल के देखते हैं

माहिरे हुस्न भी मुझे अब तो
सोच अपनी बदल के देखते हैं

राज़ खुश्बु का जानने के लिये
लोग गु्ल को मसल के देखते हैं

कितनी दुश्वार राहे उल्फ़त है
दो क़दम हम भी चल के देखते हैं

हासिले इश्क हाथ मलना है
तो चलो हाथ मल के देखते हैं

शौलये तूर है अनीता वो
लोग उसको सम्भल के देखते हैं

2 comments:

Anonymous said...

yes.. informative thread :))

Anonymous said...

Beautiful, Life is hope,Lets live it There is a Joy Lets enjoy it.
Umid pe duniya kayam he,
Chalo phir ji ke dekhte he,
Chand phir nikal aya he,
kab se chandni ko tarste he

Panchraj.