मन मंदिर के शिखर कलश से प्रेम सुधा बरसाना
मैं तो राधा बन जाउंगी तुम कान्हा बन जाना
याद बहुत आते हैं मुझको उन बाहों के झूले
मन करता है इस अंबर के कोने कोने छूलें
छुअन तुम्हारी चंदन जैसी मन पावन हो जाये
दो पल दूर रहो तो आंखों में सावन घिर आये
मेरे आंचल में सर रख कर मुरली मधुर बजाना. मन मंदिर के...
पत्थर पत्थर देव करुंगी मैं ये मान करुंगी
सात जनम तक तुझको पाउं मोती दान करुंगी
तू जो मिल जाये इक पल तो जीवन आज संवारूं
नैंनो के जमुना जल से नित तेरे चरण पखारूं
रोम रोम व्रन्दावन गोकुल मन मेरा बरसाना. मन मंदिर के...
तेरी याद के झोंकों से मन के पट हिलते डुलते
पोर पोर पर प्रेम निमंत्रण रखे हुए हैं कब से
सजन तुम्हारी लगन लगी यूं जैसे अगन गगन में
बदरा भी बरसे ऎसे जैसे घी बरसे हवन में
मैं समिधा सी जलती रहूं तुम पूर्णाहुति बन जाना. मन मंदिर के...
Tuesday, February 19, 2008
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2 comments:
याद बहुत आते हैं मुझको उन बाहों के झूले
मन करता है इस अंबर के कोने कोने छूलें
छुअन तुम्हारी चंदन जैसी मन पावन हो जाये
दो पल दूर रहो तो आंखों में सावन घिर आये
बहुत सही .. सटीक
Dr.Sahiba shabdon ke pher jaal se ilaz karna kaam hai aapka, lekin aapne to apna mareez (mureed) bana liya. vakayee bahut hi behtareen umda nazm hai aapki. Niyaz Sharif!
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