खड़ी थी मैं ना जाने कब से उस घने पेड़ तले
मैंने विश्वास किया था उसके लाखों पत्तों के स्नेह की ओट का
जो मुझे अपनेपन का अहसास कराती थी.
मगर मे अन्जान ही रह गयी
पता नही कब से रोज़ कुछ पत्ते
बिना पतझड़ और बिना हवा के ही गिरते रहे
मैंने विश्वास ही नहीं किया कि मेरा विश्वास और पत्ते यूं गिर रहे होंगे
आज अचानक जब कड़ी धूप ने मुझे झुलसाया
तो मैंने देखा कि मैं किसी घने पेड़ के नीचे नहीं
बल्कि एक ठूंठ के नीचे खडी़ हूं
Wednesday, August 13, 2008
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3 comments:
Beatuful A Heart touching poem.Its diff time diff world. Gold looks copper & stone like diamond.
Panchraj.
touching........... it really takes a while to understand the deeper meaning........... keep writting
Beautiful A Heart touching poem. Bagula bhagat bhi thunth se doodh nikal kar pi jata hain aur bacha pani bhi uske sinchane ka kaam nahin aata...
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