कहत सुनत नहीं, लगत अनत नहीं,लगन लगी है ऐसी, मन घनश्याम की।
मन मदन मोहन, रंगरसिया सजन,बखानी न जाये छवि, ललित ललाम की।
छलक छलक अंग, यौवन कलश रस,काम की कमान बिन," सोनी" किस काम की।
बजे बांसुरी की तान, गूंजे गोपियों के गान, अनुपम अलोकिक, छवि ब्रजधाम की।
मन मदन मोहन, रंगरसिया सजन,बखानी न जाये छवि, ललित ललाम की।
छलक छलक अंग, यौवन कलश रस,काम की कमान बिन," सोनी" किस काम की।
बजे बांसुरी की तान, गूंजे गोपियों के गान, अनुपम अलोकिक, छवि ब्रजधाम की।
4 comments:
Beautiful lyrics and rhythm. Great for singing. Congratulations!
thanks so much for your words.
may i know your good name please.
कैसे बाँवरि थी, वो ग़ोपाळ गिरधारी की. कितने ऩाम रक्ख छोड़ो इस प्यासी ने,
कऊँ नाम से पुकारोँ बॄज्ज़ लाला, ब्रिज्ज़ लाल, या बिरज नंदन ये दासी तुम्हारी,
बांके बिहारी है तेरो बसी मूरत, मेरो मन् मंदिर में बना दिया इक गोपी मौकों ......
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