इक ज़रा धूप जो निकल जाए
बर्फ़ ग़म की अभी पिघल जाए
ऐसा चेहरा है मेरी आंखों में
चांद देखे तो चांद जल जाए
एक कांटा जो दिल के अंदर है
दिल से निकले तो दम निकल जाए
उसको ठोकर सलाम करती है
बाद गिरने के जो सम्भल जाए
ज़ख्मे दिल वो चराग़ हैं सोनी
शाम से पहले ही जो जल जाए
Monday, February 16, 2009
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6 comments:
please publish more gazels ,geet on blog
ऐसा चेहरा है मेरी आंखों में
चांद देखे तो चांद जल जाए
bahut hi bhavpurat aur khubsurat sher hai....post ur more poems on ur blog...........dr.amarjeet kaunke@yahoo.co.in
दर्दे दिल को कैसे बया करना है कोई आपसे सीखे
Anita Ji, this is beautiful poetry. Please post more soon.
ek bar phir chand ki tulanā suraj se hui hain,
chandni to uski hi roshni mein se nahai hain,
chandaniya ki parchayi bhi to usme se hi aayi hain
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