Monday, January 20, 2020

ग़ज़ल

धूप ही धूप है इसमें साए नहीं
इश्क़ की राह पर कोई जाए नहीं
दाग़ दिल के किसी को दिखाए नहीं
इन चराग़ों को हमने जलाए नहीं
ज़ब्त करते रहे उम्र भर रंजो ग़म
ज़िन्दगी हमने आंसू बहाए नहीं
कौनसा दिन था वो कौनसी रात थी
याद करके उसे मुस्कुराए नहीं
घर से निकले हैं क्या आंसुओं कि तरह
लौट कर सोनी अब तक वो आए नहीं


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