Wednesday, October 3, 2018

उनकी नज़र से शर्म की दीवार गिर गयी 
बस एक वोट से मेरी सरकार गिर गयी 

कश्ती पहुँच रही थी किनारे के आस पास 
ऐसे में मेरे हाथ से पतवार गिर गयी 

रख देती है जला के जो हर एक शाख को 
बिजली मेरे चमन पे वो सौ बार गिर गयी 

इस बार मेरे घर में भी सैलाब  आ गया
इस बार मेरे घर  की भी  दीवार गिर गयी 

करता था नाज़ जिसपे वो मैदाने जंग में 
कातिल के हाथ से वो ही तलवार गिर गयी 

सोनी हमारी  चाल  को ऐसी नज़र लगी 
पाज़ेब पांव से सरे बाजार गिर गयी 

डॉ अनीता सोनी 
अंतर्राष्ट्रीय कवियत्री एवं शायरा 
  एमए पीएचडी {हिंदी साहित्य}



1 comment:

Unknown said...

Beautiful ghazal Anitaji